यह सुखद है कि अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भारत की बौद्धिक संपदा (आईपी) माहौल में जबरदस्त सुधार हुआ हैदुनिया की 50 अर्थव्यवस्थाओं में बौद्धिक संपदा का विश्लेषण करने वाले ताजा अंतरराष्ट्रीय बौद्धिक इंडेक्स में भारत का रैंक आठ पायदान उछलकर 36वें पर आ गया है। सनद रहे कि एक वर्ष पहले 2018 की इस सूची में भारत को 44वां स्थान प्राप्त हुआ था। रैंक इंडेक्स पर नजर डालें तो 2019 की सूची में शीर्ष पर काबिज पांच देशों में अमेरिका, ब्रिटेन, स्वीडन, फ्रांस और जर्मनी शामिल हैं। इसी तरह पड़ोसी देश पाकिस्तान रैंकिंग सूची में 47वें स्थान पर है जबकि वेनेजुएला अंतिम पायदान पर है। गौरतलब है कि इन देशों को पिछले साल की सूची में यही रैंकिंग मिली हुई थी, लेकिन भारत के संदर्भ में अपेक्षा के अनुरूप सुधार हुआ है। गौरतलब है कि यूएस चैंबर ऑफ कॉमर्स के ग्लोबल इनोवेशन पॉलिसी सेंटर यानी जीआईपीसी द्वारा तैयार की जाने वाली सूची में देशों की रैंकिंग 45 मानकों पर निर्धारित की जाती है, जो किसी भी देश में इनोवेशन को प्रोत्साहन देने के लिए बहुत आवश्यक है। गौर करें तो ताजा सर्वेक्षण में भारत को मिले अंक में भी काफी सुधार दर्ज किया गया है।
आंकड़ों पर नजर दौड़ाएं तो पिछले वर्ष भारत को 30.07 प्रतिशत (40 में 12.03) अंक मिला था, जबकि इस ताजा सर्वेक्षण में 36.04 प्रतिशत (40 में 16.22) अंक हासिल हुआ है। उल्लेखनीय तथ्य यह है कि इंडेक्स में जो देश शामिल हैं वे अंतरराष्ट्रीय जीडीपी के 90 प्रतिशत से अधिक हिस्से का प्रतिनिधित्व करते हैं। जीआईपीसी द्वारा अपने बयान में भारत की तारीफ करते हुए कहा गया है कि भारत की स्थिति में यह सुधार भारतीय नीति निर्माताओं के जरिए घरेलु उद्यमियों और निवेशकों के लिए समान रूप से एक सतत नवोन्मेषी पारिस्थितिक तंत्र विकसित करने के प्रयासों को रेखांकित करता हैजीआईपीसी के वरिष्ठ उपाध्यक्ष किलब्राइड की मानें तो अन्य देशों की अपेक्षा लगातार दूसरे साल भारत का स्कोर सबसे अधिक सुधरा है। 2017 में भारत इस सूची में 45 देशों में 43वें स्थान पर था। दो साल से अमेरिकी चैंबर ऑफ कॉमर्स ने तुलनात्मक अध्ययन वाले देशों की संख्या बढ़ाकर 50 कर दी है। विश्व बौद्धिक संपदा रैंकिंग में भारत की स्थिति निसंदेह उत्साहजनक है लेकिन इसे और भी अधिक संरक्षण और धार दिए जाने की जरूरत है।
सबसे पहले समझना यह आवश्यक है कि बौद्धिक संपदा का तात्पर्य क्या है? इसके शाब्दिक अर्थ और विश्लेषण पर जाएं तो प्रसिद्ध विद्वान जेरेमी फिलिप्स के अनुसार बौद्धिक संपदा से अभिप्राय ऐसी वस्तुओं से है जो व्यक्ति द्वारा बुद्धि के प्रयोग से उत्पन होती हैयानी कह सकते हैं कि किसी व्यक्ति या संस्था द्वारा सृजित कोई संगीत, साहित्यिक कृति, कला, खोज, प्रतीक, नाम, चित्र, डिजाइन, कापीराइट, ट्रेडमार्क और पेटेंट आदि बौद्धिक संपदा हैं। जिस प्रकार कोई किसी भौतिक धन का स्वामी होता है, उसी प्रकार कोई बौद्धिक संपदा का भी स्वामी हो सकता है।बौद्धिक संपदा के अधिकार के तहत व्यक्ति के मौलिक इनोवेशन की सुरक्षा होती है जिससे नवाचार के प्रति प्रोत्साहन को बढ़ावा मिलता है। समझना होगा कि अन्य मूर्त संपत्तियों की भांति बौद्धिक संपदा जिसका स्वरूप अमूर्त होता है, को राज्य ने विधि के माध्यम से संपत्ति की सामान्य व्याख्या के अंतर्गत मान्यता प्रदान की है। यानी जब कोई व्यक्ति अपनी क्षमता के प्रयोग से किसी मौलिक कृति का उत्पादन करता है तो वह इच्छानुसार अपनी मौलिक कृति के व्ययन का अधिकार भी रखना चाहता है
ध्यान देना होगा कि बौद्धिक संपदा ज्ञान आधारित अर्थव्यवस्था का आधार है। यह अर्थव्यवस्था के सभी क्षेत्रों में विद्यमान है तथा उद्यमों की प्रतिस्पर्धा सुनिश्चित करने के लिए उतरोत्तर प्रासंगिक व महत्वपूर्ण होता जा रहा है। यहां महत्वपूर्ण बात यह है कि बौद्धिक संपदा संरक्षण के क्षेत्र में साहित्यिक चोरी और अवैध तरीके से नकल किया जाना एक गंभीर खतरा बनता जा रहा है जिससे किसी बौद्धिक उत्पाद और उसके रचनाकर्ता की मौलिकता और प्रमाणिकता को आर्थिक क्षति पहुंच रही हैवर्तमान में अंतरराष्ट्रीय स्तर पर विश्व बौद्धिक संपदा संगठन तथा ट्रिप्स समझौते नीतिगत उपाय के जरिए बौद्धिक उत्पादकों को अपने नवोन्मेष को पल्लवित-पुष्पित करने में मदद मिल रही हैभारत के संदर्भ में बात करें तो गत वर्ष पहले 12 मई-2016 को सरकार द्वारा राष्ट्रीय बौद्धिक संपदा अधिकार नीति को स्वीकृति प्रदान की गईइस अधिकार नीति के जरिए भारत में बौद्धिक संपदा के संरक्षण और प्रोत्साहन में मदद मिल रही है।
उल्लेखनीय है कि इस नीति ने भारत में रचनात्मक एवं अभिनव ऊर्जा के भंडार को प्रोत्साहित किया है जिससे मानवीय बौद्धिक उर्जा का सतत प्रवाह जारी है। इस अधिकार नीति के तहत सरकार ने सुनिश्चित किया है कि वह अनुसंधान एवं विकास संगठनों, शिक्षा, संस्थानों, लघु-मध्यम उपक्रमों, स्वर्टअप व अन्य हितधारकों को शक्ति संपन्न बनाएगी ताकि वे अभिनव और रचनात्मक बौद्धिक माहौल का वातारण निर्मित कर सकें। इस अधिकार नीति में इस बात पर बल दिया गया है कि भारत बौद्धिक संपदा संबंधी सभी कानूनों को मानता है और यहां बौद्धिक संपदा की सुरक्षा हेतु प्रशासनिक एवं न्यायिक ढांचा मौजूद है। यहां ध्यान देना होगा कि बौद्धिक संपदा अधिकार नीति के तहत सात लक्ष्य निर्धारित किए गए हैं-एक, समाज के सभी वर्गों में बौद्धिक संपदा अधिकारों के आर्थिक-सामाजिक एवं सांस्कृतिक लाभों के प्रति जागरूकता पैदा करनादो, बौद्धिक संपदा अधिकारों के सृजन को बढ़ावा देना। तीन, मजबूत और प्रभावशाली बौद्धिक संपदा अधिकार नियमों को अपनाना ताकि अधिकृत व्यक्तियों तथा वृहद लोकहित के बीच संतुलन कायम हो सके। चार, सेवा आधारित बौद्धिक संपदा अधिकार प्रशासन को आधुनिक और मजबूत बनानापांच, बौद्धिक संपदा अधिकारों का मूल्य निर्धारण। छह, बौद्धिक संपदा अधिकारों के उल्लंघनों का मुकाबला करने प्रवर्तन एवं न्यायिक प्रणालियों को मजबूत बनाना और सात, मानव संसाधनों तथा संस्थानों की शिक्षण, प्रशिक्षण, अनुसंधान क्षमताओं को मजबूत बनाना तथा बौद्धिक संपदा अधिकारों में कौशल निर्माण करना।
नि:संदेह इन सात उद्देश्यों से भारत में बौद्धिक संपदा को गति मिली हैसंरक्षण से नित नए नवोन्मेष सामने आ रहे हैं। ध्यान देना होगा गत वर्ष 22 जून को केंद्रीय वित्त मंत्रालय ने बौद्धिक संपदा नियमों में कुछ संशोधन किए हैंउल्लेखनीय है कि केंद्रीय वित्त मंत्रालय ने पेटेंट उलंघन की शिकायतों के आधार पर आयातित उत्पादों को जब्त करने की सीमा शुल्क प्राधिकरणों में निहित शक्ति को रद्द करने के लिए बौद्धिक संपदा नियमों में संशोधन किया है। यह संशोधन बौद्धिक संपदा अधिकार प्रवर्तन संशोधन अधिनियम 2018 पेटेंट अधिनियम, 1970 के सभी संदर्भो को हटा देता है। संशोधन में आगे की स्थितियों को शामिल किया गया है जो अधिकार धारक को किसी भी संशोधन, रद्दीकरण, निलंबन या फिर प्रतिक्रिया के बारे में सीमा शुल्क आयुक्त को सूचित करने के लिए बाध्य करता है। भारत ही नहीं बल्कि सभी देश अब गंभीर दिख रहे हैं